Sunday, 28 October 2018

Youth Festival 2018


Youth Festival 2018



Dear Readers,


   Maharaja Krishna Kumarashehaji Bhavnagar University organized a three-day "Aishwaryam Yuva Manthan Youth Festival 2018" on 26, 27 and 28 Oct. Taksashila Institute of Science and Commerce College was appointed as the host.



   The Youth Festival was started with "Kala Yatra" on 8:45 in the morning, various colleges of MKBU exhibited different art works in this Kala Yatra.










    
   The students of our department participated in various activities at the Youth Festival, participating in a variety of activities like Drama, mono acting, mime, rangoli, instant picture competition, essay writing, self-made poetry recital, western song, installation,  western song, Essay writing And all the colleges, Department and institutes in Bhavnagar University also participated in many competitions, almost total  1052 competitors joined the competitions.





Installation


                         Drama



   During the closing ceremony of the Aishwaryam Yuva Monthan Youth Festival 2018, the chief guests invited to the Maharaj KrishnaKumarsihji Bhavnaga University were present, they had given literary speeches and they were awarded prizes by the winners.

                                                          Thank you...

Tuesday, 9 October 2018

यादें...



यादें...

बाहर वातावरण खुशनुमा लग रहा था। सुबह काफी शरदी थी तो सोचा अब धूप बेशक सुख देनेवाली होगी। लेकीन मैं गलत निकला। कुछ मिनिट चलकर जब कोलेज पहुंचा तो मौसम बदलने का अहसास हो गया। रुतुए बदलते देखना और उसका अनुभव करना आनंददायक होता है। मौसम अब करवट बदल रहा है; बहुत धीरे धीरे। अगर आसपास नजर ना करे तो पता भी न चले कि कब मौसम बदल गया। जो पेड रोज दिखाई पडता है उसके सारे पत्ते कब गायब हो जाये उसका पता भी नही चलता; और ना ही वो कि कब उसमे नये पत्ते लग जायेऔर वो खुशी से झुमने लगे। 

आज पतझड के पहले गिरते हुए पत्ते देखे खिडकी से। खिडकी भी कमाल की चीज है। ईसकी दूसरी ओर दिखाइ देती चीज को खुबसुरत बना देती है। निर्जिव चीजो में भावनाए नही होती पर वे बेशक हमारी भावनाए बढाती है। खिडकी से गिरते पत्ते, बारीश की बूंदे, चाँद और तारे, खेलते बच्चे सब कुछ देखने का मजा ही कुछ और है और रेलगाडी की खिडकी से नजारे देखने की तो बात ही क्या। कोलेज में भी खिडकी के नजदिक बैठना अच्छा रहता है। कभी कभार बाहर नजर कर लेने से अच्छा लगता है। कुछ ना कुछ देखने को होता ही है। गिलहरिया, विविध प्रकार की चकलिया, कुत्ते, और आज ये पत्ते। आज इन पत्तो को देखकर कइ सारे खयाल मन में उमडने लगे है। अभी पतझड की बस शुरुआत ही है। पत्ते गिरने तो लगे है पर कुछ कुछ ही। क्या सबसे पहले गिरने की उनके लिए खुशी की बात होगी या गम की? पत्ते तो हंमेशा ही गिरते ही रहते है लेकिन पतझड में गिरना खुशकिस्मती होगी। जिंदगी खत्म करके जाना उतना दु:खद नही होता।

कहते है पेड भी जिंदा चीज है। पत्ते भी तो उसका हिस्सा है। कैसा लगता होगा अपने हिस्सो को खोकर? पेड कैसा महसूस करता होगा जब आखरी पत्ता गिरता होगा? ये उसके लिए तनहाई का मौसम रहता होगा। कभी उस पर पंछीयो का बसेरा होगा। उनकी आवाजो से खुद को भरा हुआ पाया होगा। कभी कीसी मुसाफर ने उसकी छाँव में आराम कीया होगा, कभी वो प्रेमियो के ईजहार का गवाह बना होगा। अब कुछ महिनो के लिए उसे इससे दूर रहना था। उसे शिकायत तो होगी ही की उसने कहां किसी का कुछ बिगाडा है, सब की मदद ही तो की है फिर किस बात की उसे ये सजा मिल रही है?

पेड के ईन गिरते पत्तो को इन्सान ने अपनी जिंदगी के कुछ पहलुओ के साथ जोडकर फिलसूफी का दायरा बढाया है। ज्यादातर इसकी उपमाए बुढापे और मृत्यु के लिए दी जाती है। जीवन की शुरुआत होती है, हम इसको जीते है और जब जाने का मौसम आता है तो चले जाते है। पत्तो की गिरने की घटना को वृध्धावस्था की व्यथा को बयां करने के पहलू से भी देखी जा सकती है। जींदगी में एक वक्त होता है जब परिवार साथ होता है। बच्चे, पोते पोतिया, घर हराभरा होता है हरे पेड की तरह। लेकिन बच्चे जब बडे होने लगते है तो दूर होने लगते है और वो बूजुर्ग उस पेड की तरह बिलकुल खाली हो जाता है। कई ऐसे बुजूर्गो को देखा है जिनकी आँखो में सिर्फ शून्यता और अकेलापन होता है।


चाहे जो भी हो फिलहाल तो पतझड के पहले पत्ते गिर रहे है। मौसम बदल रहा है। कुछ दिनो के बाद आखरी पत्ता भी गिर जायेगा और उस पेड के लिये बचेगा सिर्फ इंतजार बहार का।