Friday, 9 February 2018

Gazal



"तुम पर गज़ल लिखना क्यों मुश्किल है "हेमा" ?
 एक मिसरा तुम मेरी अर्ज का उठा लो 
एक मिसरा में तुम्हारी बरुखी का तोड लाता हूं।"

सुन कलम। 
कुछ देर मेरी स्याही को "हेमा" बख्श दे।

शब्दों से नहीं.... अनुगुंज से भरती है हेमा....

गज़ल

आँखो से आँखे मिलाना तो फिर से। 
गज़ल 'हेमा' की गुनगुनाना तो फिर से॥ 
हुईं ईद बरसों से जो मेरी नहीं है। 
रुख से दुपट्टा हटाना तो फिर से॥ 
लिखा नाम तेरा क्यों मिटता नहीं है। 
हाथों की हीना दिखाना तो फिर से॥ 
रूठी तरन्नुम जीस्त ए गज़ल से। 
तराना पुराना सुनाना तो फिर से॥ 
खेल मुहब्बत का खेला था तुमने। 
खेल में मुझको हराना तो फिर से॥ 
दीवारे सिसकती है कमरे की मेरी। 
कमरे को महकाने आना तो फिर से॥ 
बे असर जाम, मयखाने थक से गए है। 
जाम नजरों के अपने पिलाना तो फिर से॥ 
शरमाना था वो कातिलाना तुम्हारा। 
हथेली में चंदा छिपाना तो फिर से॥

2 comments:

  1. अदभूत.....
    बढ़िया......
    लिखते रहना ...... शेयर जरूर करियेगा......
    😊👍👌©....

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